फुर्सतनामा


जिन्दगी नामा
मार्च 12, 2015, 8:52 पूर्वाह्न
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यहां होंगी वे कहानियां उन जिंदगियों की जो दिखाती हैं नई जिन्दगियों को राह



रिपोर्टर की डायरी-5(चिन्गारी)
अगस्त 10, 2009, 10:51 पूर्वाह्न
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रिपोर्टर की डायरी-5
ट्रीं………….ट्रीं………………ट्रीं………………….. डोरबेल की तेज आवाज ने रोजी की नींद तोड़ी,, सुबह सुबह कौन आ मरा…कहते हुए उठी रोजी ने तुरऩ्त गाउन पहनते हुए घड़ी देखी तो पता चला सवा ग्यारह बज रही थी। ओ माई ग़ॉड आज तो वक्त का पता ही नहीं चला, आती हूं बाबा,, और रोजी ने दरवाजा खोला तो विक्रम अपने सारे माल असबाब के साथ दरवाजे पर खड़ा था। अरे तुम…। क्यों,, । तुम ने ही तो बुलाया था सो आ गया..इतने कहते हुए विक्रम अपने सामान के साथ अन्दर घुस आया। पर कल तो तुम मना कर रहे थे…। जाने क्या क्या कह रहे थे। यहां वहां बिखरे अपने कपड़े समेटते हुए रोजी बोली.. कम से कम मुझे फोन तो कर देते, जानते हो न ऐसे बिना बताए आना कर्टसी के खिलाफ होता है।,, यह कहते हुए उसके होठों पर शरारती मुस्कान तैर रही थी। अरे वो राजेश का बच्चा,, आज सुबह ही सविता के साथ कमरे पर आ धमका,, कहने लगा,, यार हमने आज ही मैरिज करने का प्लान बना लिया है.. तू कुछ व्यवस्था देख.. ज्यादा नहीं तो तीन चार दिन का जुगाड़ तो कर,, फिर वापस आ जाना,, मैंने कहा चलो तीन चार दिन की ही बात है तो रोजी के यहां ही चलता हूं।,, क्यों ठीक किया न। बिल्कुल ठीक किया,, तुम ऐसा करो बाहर वाले कमरे में अपना डेरा जमा लो.. मैं तैयार हो कर ऑफिस के लिए निकल रही हूं। किचन में जो चाहो बना खा लेना,, कहीं जाओ तो चाबी डोरमेट के नीचे डाल देना,..। मैं तो देर रात को ही आउंगी। इतना कहते हुए वो तुरन्त बाथरूम में घुस गई। हकबकाया विक्रम बाहर वाले कमरे में ( दो कमरों के इस फ्लैट में एक कमरा बालकनी वाला था, और दूसरा बाहरवाला कहलाता था.शायद कॉमन ड्राइंग डायनिंग के पास होने के कारण उसे बाहरवाला कहा जाता था।)अपना सामान रख कर कमरे का जायजा लेने लगता है।इतने में रोजी की आवाज आती है.. तुम चाय पियोगे.,.. हां… तो किचन में बना लो..मेरे लिए भी बना देना प्लीज.. मुझे जरा देर हो रही है.. वरना मैं ही बना देती,.. नहीं नहीं कोई बात नहीं.. मैं बना देता हूं। वह किचन में जाने के लिए बाहर निकलता है.. और इतने में ही रोजी नहा कर तौलिया लपेटे बाथरूम से निकलती है। रोजी को यूं सामने देख विक्रम अचकचा जाता है। रोजी के कंधे तक के बालों में पानी चू रहा था. उसके चेहरे और गालों पर जगह जगह पानी की बूंदे ठहरी हुई थी… । विक्रम को यूं घूरता देख रोजी बोली,. ,, ऐ, क्या घूर रहे हो,, मुझे कभी देखा नहीं क्या,, देखा तो बहुत बार है,, पर यों नहीं,,इतना कहते कहते विक्रम झेंप कर फर्श में नजरें गढ़ाता हुआ रसोई का रुख कर लेता है और रोजी अपने कमरे का। किसी चीज की शुरूआत हो चुकी थी,, कहीं चिन्गारी को हवा मिल चुकी थी,,।
रोजी जैसे ही मीटिंग हॉल मे पहुंची तो देखती है सारे रिपोर्टर आ चुके थे और उसी का इन्तजार हो रहा था। उसे देखते ही अमित सिंह जो उनका बॉस था, बोला,,,, क्यों रोजी रात फिर ज्यादा हो गई थी क्या,,,, क्या अमित तुम हर समय यूं क्यों टीज करते हो। तुम्हें क्यों चिढ़ होती है मेरी पर्सनल लाइफ से .. अरे बाबा नाराज क्यों हो रही हो,.. तुम से जरा सा भी मजाक नहीं कर सकते क्या,., टाइम देख रही हो.. साढ़े दस की मीटिंग में तुम साढ़े ग्यारह आ रही हो। यहां क्या क्या प्लान हुआ अब सब तुम्हें बताओ,,. तुमको पता है तुम इन सबकी चीफ हो, और तुम ही इर रेगुलरेटी करोगी तो कैसे काम चलेगा.. तो मैंने कहा था मुझे चीफ बनाओ,, मैंने तो मना ही किया था.. पता नहीं क्यों जबरदस्ती चीफ का तमगा पहना दिया। खैर बताओ,.,. आज क्या है.. वो आज पोलो फेस्टिवल का फाइनल है.,. तुम्हें तो पता ही बॉलीवुड के सारे स्टार आ रहे हैं। उन पर स्टोरी करनी है.. । नहीं हो सकती,,.रोजी का सपाट जवाब था..। अरे ऐसे कैसे नहीं होगी.. तुम कोशिश तो करो.. । कल से कोशिश ही कर रही हूं। सब को फोन कर दिया, कोई भी तैयार नहीं है,. टाइम तो बहुत दूर की बात है कोई घुसने तक नहीं देगा। होटल के मैनेजर ने पहले खुद ही चला कर कह दिया,. रोजी डियर, इस बार जिद मत करना,, मेरे जॉब का सवाल है,, और वो जो होस्ट है,, वो तो ऐसे फूल रहा है जैसे इस फेस्टीवल के बाद उसे लोकल मीडिया कवरेज की जरूरत ही नहीं है। साला फोन तक अटेंड नही कर रहा । मैं कुछ नहीं जानता। अमित ने अपना निर्णय सुनाते हए कहा… आज इस पर फुल पेज जाएगा और वो भी फ्रन्ट पेज,.। फोटो का इन्तजाम भी करना। चाहो तो किसी को साथ ले लो। अजय या लोपा मैं से किसी को ले जाओ। चलो अब सब काम पर जुट जाओ,,। फुल पेज जाएगा,, हुंह,, कहां से लाउं फुल पेज ,, मेरा फोटो छाप दो , खूब बिकेगा,,। चलो अजयकुमार, मेरे राजकुमार अपनी लोपा को भी बुलाओ हम मिल कर लव का ट्रायगल बनाते हैं। शाम तक कुछ तो निकलेगा ही। मैं जरा फ्रेश हो कर आती हूं तब तुम सोर्स खंगालों, कुछ बात बने तो बताना,, हां भल्ला टूर वाले से बात करो कुछ न कुछ जुगाड़ हो ही जाएगा। रोजी के फ्रेश होने का मतलब था,, एक सिगरेट का राख होना और उसके धुंए से अपने खाक होने का इंतजाम करना।
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हमसफरःरिपोर्टर की डायरी-4
मार्च 21, 2009, 1:15 पूर्वाह्न
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हमसफरःरिपोर्टर की डायरी-4

कुछ खास नहीं। अभी तो अपने लिए अलग रूम की तलाश में जुटा हुआ हूं। राजेश और सविता जल्द ही शादी करने वाले हैं और राजेश चाहता है वो शादी के बाद इसी फ्लैट में रहे। सो मुझे वहां से बोरिया बिस्तर समेटना ही पड़ेगा। आज ही दिन भर मकान की तलाश मे घूमता रहा हूं पर हर कोई मेरे बैचलर होने का पता चलते ही मुझे टरका देता है। कल फिर जाऊंगा। वाकई मकान ढूंढना भी एक भारी काम है। बहुत थकान महसूस कर रहा हूं। चलो कहीं चल कर कुछ खाया जाए।
दोनों जने विक्रम की बाइक पर सवार हो श्री माया का रूख करते हैं। श्री माया उनका पसंदीदा फूड सेन्टर था। वहां की मलाई मेथी विक्रम और रोजी दोनों को ही बहुत अच्छी लगती थी। अक्सर दोनों की शाम वहां की कोने वाली केबिन में ही गुजरती थी और वेटर से लेकर मालिक तक सभी न केवल उनसे ठीक प्रकार से वाकिफ थे बल्कि वे उनकी पसंद तक जानते थे। अब तो यह हाल हो गया था कि वेटर दोनों से ऑर्डर भी नहीं लेते थे, बल्कि उनके पहुंचते ही सीधे खाना हाजिर कर देते थे। खाना खा चुकने के बाद रोजी ने एकाएक कहा, विक्रम तुम एक काम क्यों नहीं करते।
क्या।
मेरे साथ ही क्यों नहीं रहते।
मजाक मत करो, मैं वैसे ही बहुत परेशान हूं, और कम से कम कमरे को लेकर तो कोई मजाक नहीं, राजेश भी पांच दिन बाद ही शादी करने वाला है। उससे पहले उसे फ्लैट को दुबारा से सजाना है। मुझे तो बस दो दिन में ही कमरा खाली करना है। और तुम मेरी टांग खिंचाई कर रही हो।
मैं टांग खिंचाई नहीं कर रही, आई एम सिरीयस। जब से ऋचा गई है मै भी अकेले रहते रहते बोर हो गई हूँ। तुम रहोगे तो शायद मुझे घर पर रहना कुछ अच्छा लगे।
नहीं यार तुम्हारे घर वाले क्या सोचेंगे। और फिर ऐसे रात दिन साथ रहना ठीक नहीं है।
देखो मम्मी कभी कभी आती हैं, जब वो आएं तब तुम कोई व्यवस्था कर लेना। बाकी लोगों का क्या वो कहें यही तो मैं चाहती हूं। बस अब पक्का हो गया तुम कल अपना सामान लेकर मेरे यहां शिफ्ट हो रहे हो।
चलो कल की कल देखेंगे। अभी तो तुम्हें तुम्हारे रूम पर छोड़कर मैं जाकर सोऊं। मुझे कल एक कैनवास कम्पलीट करना है, और तुम जानती हो मैं ब्रश केवल सुबह सुबह ही चलाता हूं।



आखिर लड़कियों को ऐसा क्यों बनाया…(रिपोर्टर की डायरी-3)
मार्च 18, 2009, 6:55 अपराह्न
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girl2हां, और वो बाकी ही रहेगा,,, क्योंकि तुम मेरे लिए कोई मॉडल नहीं हो जिसको मैं केनवास पर उतार दूं। तुम मेरी भावना हो,, समझी। छोड़ो ये बताओ अभी क्यों बुलाया। अरे वो मन कुछ ठीक नहीं था। कल रात को एक पार्टी की कवरेज में गई थी। वहां निशा ने जबरदस्ती ज्यादा पिला दी। सिर भारी हो रहा था ऊपर से वो अनिरूद्ध हर समय गज भर की लार टपकाता पीछे घूमता रहता है। मुझे उस पर बहुत गुस्सा आता है। सोचती हूं किसी दिन उसकी शिकायत कर दूं। लेकिन उससे क्या होगा। यहां तो साले सब एक जैसे हैं। यहां ही क्यों सभी जगह सारे ही साले एक जैसे ही होते हैं किसी भी लड़की के टैम्परेरी खसम बनने के लिए तैयार। सच कहूं तो इसमें उनका दोष नहीं है। ये साला सब कसूर भगवान का ही है उसने ही ऐसा बनाया है। लड़कियों को बदन ही ऐसा दिया है कि हर कोई उसे गुलाबजामुन की तरह चट कर जाना चाहता है। पर उसने ऐसा क्यों बनाया है ? क्या लड़कियों को इसी लिए बनाया गया है कि वह पुरूष की आवश्यकता की पूर्ति करे, उसकी दिलजोई करे,उसे तरह-तरह से खुश करे। और बाकि बचे समय में भी उसके लिए ही काम करे। उसके कपड़े धोए, खाना बनाए, घर संभाले, बच्चे पैदा करे, और उन्हें बड़ा करे फिर मर जाए। हो गई जिन्दगी। मर्दों की इस चटोरी नजर से बचने के लिए ही तो पहले जमाने की लड़कियों ने अपने आपको बेतुके ढीलेढाले लिबासों में ढंक लिया था। वह जानती थी उसके शारीरिक भालों की नोंक पुरूषों की आंखों में चुभ कर उसी पर कहर बन टूटेंगी। इसलिए अपने प्रकृति की आंख में धूल झोंकने के लिए खुद को ही पर्दानशीं कर लिया।

… पर अब तो ऐसा नहीं है। आज तो लड़कियां हर जगह लीड कर रही हैं। चाहे पॉलिटिक्स हो या कॉरपोरेट सैक्टर कहीं भी देख लो वो सब जगह आगे है। ..

           लीड माई फुट। जिसे तुम लीड कह रहे हो वो केवल दिखावा है। हकीकत मैं यह केवल एक तिलस्म है जो जब टूटता है लड़की को ही पराजित करता है। जो कहीं न कहीं लीड कर रही है वो कहीं जबरदस्त हार का अनुभव भी करती है। कोई एक ऐसा मोर्चा जरूर होता है जहां उसको मन मसोस कर जीना ही पड़ता है। समझौता करना पड़ता है। अपने स्वाभिमान को मिथ्या अभिमान की बलि चढ़ानी ही पड़ती है।

. …. लेकिन तुम तो अपनी शर्तों पर ही जी रही हो न…

              विक्रम तुम नहीं जानते ये अपनी शर्तों वाली सेल्फमेड इमेज के लिए मैंने क्या चुकाया है । छोड़ो फिर कभी बताऊंगी। अभी यह सब रहने दो तुम अपनी बताओ क्या चल रहा है… ।



रिपोर्टर की डायरी-2
मार्च 2, 2009, 1:01 पूर्वाह्न
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सरस पार्लर कहने को केवल आइसक्रीम लस्सी का सरकारी आउटलेट था, लेकिन वहां बहुत खुली जगह पेड़ो का झुरमुट और उनके नीचे लगी बैंचे प्रेमी जोड़ों को बढ़िया और खुला वातावरण देती थीं। रोजी का मैसेज मिलते ही विक्रम तुरन्त वहां पहुंच गया। उसे इन्तजार करते- करते आधे घण्टे से ज्यादा हो चुका था और इस दौरान तीन सिगरेट सुलगा चुका था, लेकिन पता नहीं यह रोजी कहां अटक गई थी। उसे इन्तजार करवाने में मजा आता था और विक्रम को इन्तजार करने में। पार्लर के के एक लैम्प पोस्ट से कंधा टिका कर खड़े खड़े उसे रोजी से अपनी पहली मुलाकात की याद आ गई।… उसकी आर्ट एग्जीबिशन लगी थी। वो बोल्ड स्ट्रोक्स का कायल था। इसलिए उसने बेहद मेहनत कर एक न्यूड सीरीज तैयार की थी। जिसमें अलग अलग एज ग्रुप की महिलाओं को दर्शाया था। उसके हर केनवास में ब्लैक बैकग्राउण्ड के साथ लाल तपता सूरज होता था। हर कोई इसकी तारीफ करता रहा था। उसी दौरान यह लड़की आई और सीधे कहने लगी, यह एग्जीबिशन आपकी है,

-हां,

आपने स्केच तो खूबसूरत बनाएं हैं, पर इन्हें बनाते हुए आप संकोच कर गए। विक्रम एक लड़की के मुंह से यह बात सुन कर दंग रह गया लेकिन दंग रहना अभी बाकी था, उसने आगे कहा, वाकई आपने बहुत अच्छा प्रतीक इस्तेमाल किया है। रात में तपता सूरज। लड़कियां हमेशा यूं ही तपती रहती हैं कोई इन्हें नहीं बुझाता । यह सुन कर चौंकने की बारी विक्रम की थी। सोचने लगा. हां सूरज का इस्तेमाल करते समय उसने कुछ ऐसा ही सोचा था लेकिन कोई लड़की उसे यह समझाएगी इसकी उम्मीद नहीं थी। उसका अगला सवाल था, इन्हें बनाते समय क्या सोचा, कुछ नहीं, बस मजा आया, एक एक स्ट्रोक दिल से लगाया और क्या।… दूसरे दिन हैडिंग था, न्यूड पेंटिग्स बनाने में आया मजाः विक्रम… शहर के एक आर्ट सेंटर में एक पेंटर की एग्जीबिशन लगी है। जिसमें सारे पोट्रेट्स न्यूड हैं। चित्रकार का कहना है कि उसने महिलाओं की भूख को उजागर करने की कोशिश की है। और भी न जाने क्या- क्या लिखा था..। उसे पढ़ते हुए ही विक्रम जबरदस्त तनतमा गया था, लेकिन जाने क्या हुआ था कि पांच दिन से लग रही उसकी एग्जीबिशन के बारे में सुबह से ही हर जानने वाले का फोन आ रहा था, मोबाइल की बैटरी की हालत यह हो गई थी की उसे लगातार चार्ज करना पड़ रहा था। हर कोई पूछ रहा था कहां लगी है, जबरदस्त पेंटिग्स बनाई हैं, करेजियस है,, ये वो. और विक्रम मन ही मन उस अखबार को गरियाने में जुटा था। जैसे-तैसे तैयार हो कर जब एक्जीबिशन खोलने पहुंचा तो, देखा कई लोग उसकी दीर्घा के आस पास मंडरा रहे थे, उसने एग्जीबिशन ओपन की और तुरन्त उस अखबार के दफ्तर में फोन किया। आपके यहां लोकल एडिटर से बात करनी है.. हैलो,, हां,. कहिए मैं ही स्थानीय संपादक हूं …. बताइए आपको क्या काम….. मैं आपके सिटी सप्लीमेंट में पेज तीन पर छपी खबर के बारे में ,,, वो खबर… अरे भाई, सुबह से कितने फोन आ गए खैर वह तो आर्ट सेंटर में लगी है.. और रिपोर्टर रोजी सिंह है ,, मिलना हो तो एक से दो के बीच आर्ट सेंटर में ही मिल लेना,,, । इतना कह कर फोन रख दिया। अब उसे आर्ट सेंटर में रोजी सिंह का इन्तजार करना था,, वह आर्ट सेंटर के रिसेप्शन पर कह आया था कि रोजी सिंह आए तो उसे फोन कर दें। पौन बजे के आस पास वही कल वाली लड़की आती दिखी,, क्या पैंटर साब क्या हाल है,, विक्रम कुछ नहीं बोला .. कैसा लगा आज का अखबार देख कर , मजा आया.,,. अरे मैं क्या जानूं ये अखवार वाले भी कुछ तो भी लिख देते हैं.. मैंने ऐसा कहा ही नहीं, कोई रोजी सिंह है आने दो उसे .. वो बोली, अरे आने क्या दो, मैं तो आ गई और इतना कह विक्रम की टेबिल पर झुकती चली गई। बोलो मजा आया या नहीं। आज देखो तुम्हारी गैलरी कैसी ठसाठस भरी है.. पर मैंने तो .. हां मालूम है तुमने कुछ नहीं कहा, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ता हम जर्नलिस्ट तो जो मन में आता है वही लिखते हैं.. समझे.. चलो एक सिगरेट पिलाओ। विक्रम उसे सिगरेट ऑफर करता है., दोनों सिगरेट सुलगाते सुलगाते बाहर आ जाते कि तभी वह बोलती है, विक्रम मेरा एक काम करोगे,, बोलो.. मेरा न्यूड पोट्रेट बनाओगे.. हतप्रभ विक्रम उसकी ओर देखता है ,, और कुछ जवाब देता कि उसके सिर चपत सी पड़ती है और वह यादों की दुनिया से लौट कर हकीकत में आ जाता है.. .देखा तो रोजी खड़ी थी एकदम स्कीन टाइट फिट ड्रेस में,,बोली, चल सिर दुख रहा है, सिगरेट पिला और फिर एक लस्सी भी.. हैंग औवर दूसर करना है,. वैसे क्या सोच रहा है,, कुछ नहीं अपनी पहली मुलाकात के बारे में सोच रहा था,, अच्छा वो .. क्या.. ,,,औऱ उसके चेहरे पर भी मुस्कान तैर गई .,, उसने मुस्कराते हुए कहा.. मेरा पोट्रेट तो अभी बाकी ही है,,,..



रिपोर्टर की डायरी
फ़रवरी 25, 2009, 2:57 अपराह्न
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कहां हो भाई, रिपोर्ट कब तक दोगी। यह आवाज थी डेस्क से।

वो चाहता था कि बीस मिनट पहले बताई स्टोरी दस मिनट बाद फाइल हो जाती। स्टोरी तो फाइल कर ही देती पर ये इन्ट्रो की लाइने ही नही बैठ रहीं। बुरा हो निशा का जो रात को नहीं करते भी तीन पैग ज्यादा कर गई। अभी तक सिर दर्द कर रहा है। चलो अभी तो जैसा भी है लिख मारो…..

रात जवान थी और डीजे की धुन पर होई थिरक रहा था। लेकिन ऐसे में कोने में अकेली खड़ी एक लड़की को एक लड़का कहता है मे आई बॉट यू ए ड्रिंक, लड़की कुछ कहती इससे पहले ही उसने का हाथ थामा और उसे खींचने लगा। लड़की चिल्लाने सी लगी लेकिन डीजे की तेज आवाज में कोई उसकी ओर ध्यान नहीं दे रहा था। तभी अचानक एक हाथ उस लड़के को रोकता है। और उठा कर क्लब से बाहर फेंक देता है। ये था क्लब का बाउंसर। जी हां, ये बाउंसर्स ही आजकल क्लब को अकेली लड़कियों के लिए सेफ जोन बना रहे हैं। सिटीटाइम्स ने शहर के कुछ क्लब्स में घूम कर ऐसे ही कुछ क्लब्स का जायजा लिया जहां बाउंसर्स हायर किए गए हैं। पता चला की यहां लड़कियां ज्यादा सेफ महसूस कर रही हैं। प्रस्तुत है रोजी सिंह की एक रिपोर्ट—

वाह क्या स्टोरी लिखी है, मजा आ गया, मैं तो कहता हूं तुम्हारा कोई मुकाबला ही नहीं है। ये कहना डेस्क हैड अनिरुद्ध का। और इतना कहते कहते वह रोजी के डीप नेक टॉप से झांक रहे उसके क्लीवेज पर नजर गढ़ाने से बाज नहीं आ रहा था। उसकी नजर का रुख देख रोजी अपनी सीट से खड़ी होते हुए बोली। बस करो इतना भी नहीं उड़ो। स्टोरी में कोई प्रॉब्लम हो तो फोन कर देना मेरा सिर दर्द कर रहा है मैं जा रही हूं। इतना कह कर वह वहां से निकल पड़ी। तभी उसके फोन पर मैसेज आया, व्हेयर आर यू बेब्स। उसने जवाब दिया., पांच मिनट में सरस पहुंचो कुछ दिल नहीं लग रहा।



निर्विकारता और वास्तविकता
मई 9, 2008, 11:56 अपराह्न
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पिछले कुछ समय का अनुभव वाकई जीवन का नया अनुभव है,लोग खामख्वाह ही विरोध करने में जुटे हैं, मैंने कहीं पढ़ा था,लोग सफलता की खिल्ली उड़ाते हैं, शायद यही दौर चल रहा है। पर वाकई स्वयं पर संयम रखने से बल मिलता है। चक्रव्यूह में अर्जुन सी स्थिति होने पर भी यदि आप लोगों के बाण झेल लेते हैं तो अगला बाण झेलने की ताकत का अहसास होने लगता है। कुछ दिन से मन खिन्नता अनुभव कर रहा था। कुछ सहकर्मी अनावश्यक ही छींटाकशी करने या तंज मार कर अपने आप को बड़ा तीसमार खां साबित करने में जुटे थे। बात बे बात उलझने का प्रयास करने में लगे थे। कई बार मन में जबरदस्त गुस्सा भी आया पर स्वयं नियंत्रण कर बात को अनदेखा कर दिया। अब उन पलों के बारे में ख्याल करता हूं लगता है कि सही किया जो चुप रहा। उनके मुंह लगने का कोई फायदा नहीं। इसमें उनका भी कोई दोष नहीं, कुछ लोग उन्हें ऐसा संदेश दे देते हैं कि वे कुछ ऐसा करें जिससे छवि उग्र बन जाए। बड़े प्रयत्नों से छवि की उग्रता पर काबू पाया है, अब इसी प्रकार अभ्यास करना है ताकि उग्र व्यक्तित्व की छवि में परिवर्तन हो सके। कोशिश जारी है, कुछ साथियों का मत भी है कि पहले की अपेक्षा बहुत शांत रहता हूं। पर क्या किया जाए कि जो लोग जबरन विरोध कर रहे हैं वो विरोध करना बंद कर दें। कुछ साथी ऐसे भी हैं जो जानबूझकर कमजोर साथियों को इस प्रकार के वाक्य कहते हैं कि वे विरोध में सोचना शुरू कर देते हैं। खैर इन सारी बातों का सार वाक्य यही है,,,
लीजिए, यह भी गुजर जाएगा….



hi
मई 9, 2008, 2:53 पूर्वाह्न
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once again i am back

from now onwords i will try my best to update this , fursatname ke liye fursat bhi to honi chahiye…. ummid hai milegi…. nahi milegi to nikal lenge.

 समय परिवर्तनशील है, और स्थितियां बदलती रहती हैं,जो आज शाह होते हैं वे कल सड़क पर होते हैं और जो कल सड़क पर थे वे आज शाह हो सकते हैं। पर सड़क से उठकर शाह बनने का यह सफर अक्सर बहुत से लोगों की सदाशयता नतीजा होता है लेकिन यह भी सच है कि कुछ पहचान पा चुके लोग, अपनी पहचान में योगदान देने वालों को श्रेय नहीं देना चाहते।क्योंकि कहीं न कहीं इससे उनकी सेल्फमेड इमेज पर असर पड़ता है। उनका छद्म अहंकार खंडित होता है। शायद यही इन्सानी प्रवृत्ति है कि वह अच्छाई के प्रतिकार में अच्छाई नहीं करता है। पर फिर भी मेरा व्यक्तिगत अनुभव कहता है कि समय बदलता है , यह कथन हमेशा सत्य है,इसलिए स्थितियां हमेशा एक सी नहीं रहती। एक छोटी कहानी है, किसी के सामने संकट था कि वह एक ऐसा कथन ढुंढ़ कर लाए जो अति सुख और अति दुःख दोनों ही स्थितियों में सम्यक अहसास करवाए। अंततः बहुत कठिनाईयों से उसने जो सूत्र ढूंढा वह है-

लीजिए, यह भी गुजर जाएगा….।
वाकई यह बेमिसाल कथन है…..



Hello world!
नवम्बर 10, 2007, 3:11 अपराह्न
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